द गर्ल इन रूम 105
अल्लाह कसम, जारा आपा मेरे लिए दूसरी मां जैसी थी। मैंने कुछ नहीं किया है। 'अगर पुलिस मुझे पकड़ लेती है तो वो मुझको तब तक टॉर्चर करेगी, जब तक मैं उसे ज़ारा आपा ही नहीं, तहरीक के कामकाज के बारे में भी सबकुछ नहीं बता देता।
'लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप सभी लोगों को ख़तरे में डालने से तो बेहतर होगा कि मैं खुद अपनी
जान ले लूं। मैं एक बड़े काम के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने को तैयार हूं, जैसा कि आपने मुझे सिखाया है। 'मुझे अफसोस हो रहा है कि जब हमारा कश्मीर आखिरकार आजाद होगा. तो मैं आपके चेहरों पर मुस्कराहट देखने के लिए जिंदा नहीं रहूंगा। मैं आपसे और तेहरीक़ से मोहब्बत करता हूँ, हाशिम भाई। मेरी अम्मी
का ख्याल रखिएगा। मैं जानता हूँ आप ऐसा करेंगे। "जारा आपा, जल्द ही आपसे जन्नत में मुलाकात होगी। आपके जाने के बाद, वैसे भी इस धरती पर जिंदा रहने की एक वजह मेरे पास नहीं रह गई थी।"
"सभी को ख़ुदा हाफ़िज़।' सिकंदर ने फिर दुआ के कुछ शब्द बुदबुदाए। चंद पत्नों बाद उसने गन निकाली और उसकी नाली अपने मुंह
में रख ली। आगे क्या होने वाला है, यह सोचकर मेरा चेहरा तनाव से भर गया।
लेकिन, उसने केवल वे किया और वीडियो वहीं पर रुक गया। जाहिर है, उसे रिकॉर्डिंग खत्म करने के बाद इस वीडियो को अपलोड करके उसका लिंक भी क्रिएट करना था। इसके बाद ही वह खुदकुशी कर सकता था। 'बाऊ, सौरभ ने वीडियो देखने के बाद कहा। उसका मुंह खुला का खुला रह गया था। “भई वाह, अब तो सुसाइड नोट भी हाई-टेक हो गए हैं, ' इंस्पेक्टर सराफ ने कहा ।
एक घंटे बाद कांस्टेबल्स और होटल स्टाफ़ के लोग मिलकर सिकंदर की लाश को पार्किंग लॉट में खड़ी एम्बुलेस में चढ़ा चुके थे।
नाश को मुर्दाघर में ले जाओ। किसी को कानोकान खबर नहीं होनी चाहिए। केवल इसकी मां को इतिला
दे दो, इंस्पेक्टर ने कहा। एम्बुलेंस के जाने के बाद वे अहमद की ओर मुड़े।
*ये केवल एक चूहा था, जो मर गया। इसमें जांच करने जैसा कुछ नहीं है। अपने होटल की साफ-सफाई करवा लो, और अगली बार इसके जैसा कोई आए तो हमें ख़बर कर देना।'
'जी, साहब। बहुत-बहुत शुक्रिया, साहब। अल्लाह और ' अहमद होटल में चला गया। सराफ के साथ आए दोनों कांस्टेबल जीप में सवार हो गए।
अब पार्किंग लॉट में केवल सराफ, सौरभ और मैं रह गए थे।
"लगता तो नहीं कि इसी ने अपनी सौतेली बहन को मारा होगा,' सराफ ने अपनी ठोड़ी सहलाते हुए कहा । मैंने सिर हिला दिया। "ये लोग मरते समय झूठ नहीं बोलते, सराफ ने पुलिस की जीप में बैठते हुए कहा। फिर उन्होंने जीप की
खिड़की से सिर बाहर निकाला। "क्या मैं एक बात कह सकता हूँ?" सराफ ने कहा।
"जी, सर, मैंने कहा
'ये तफ्तीश और तहकीकात करना हर किसी के बस की बात नहीं है। इंसान को वही काम करना चाहिए, जो वो कर सकता है।"
"भाई, कुछ तो बोलो, सौरभ ने कहा 'तुम सुबह से एकदम चुप हो।' "तुमने दिल्ली जाने के लिए फ़्लाइट्स चेक की या नहीं" मैंने कहा।